Psalms 74
आसाप के एक मसकील ▼▼संभवतः संगीत के एक सबद।
1हे परमेसर, तेंह काबर हमन ला हमेसा बर छोंड़ दे हस?तोर गुस्सा ह तोर चरागन के भेड़मन के बिरूध काबर सुलगत हे?
2ओ जाति के मनखेमन ला सुरता कर, जेमन ला तेंह बहुंत पहिले बिसाय रहय,
तोर निज भाग के ओ मनखेमन, जेमन ला तेंह छोंड़ाय रहय—
सियोन पहाड़, जिहां तेंह निवास करय, ओ जम्मो ला सुरता कर।
3अपन कदम ला ये अनंतकाल के बिनास के तरफ कर,
ये जम्मो बिनास, जेला बईरी ह पबितर-स्थान ऊपर लाने हवय।
4तोर बिरोधीमन ओ जगह म गरजत हें, जिहां तेंह हमर ले मुलाकात करे रहय;
ओमन चिनहां के रूप म अपन झंडा गाड़े हवंय।
5ओमन अइसने बरताव करिन, जइसने मनखेमन घोर जंगल म
कुसलता से रूखमन ला टंगिया ले काटथें।
6ओमन अपन टांगा अऊ टंगिया ले
नक्कासी करे गे लकड़ी ला चूर-चूर कर दीन।
7ओमन तोर पबितर-स्थान ला जलाके धुर्रा म मिला दीन;
जिहां तोर अराधना होथे, ओ जगह ला ओमन असुध कर दीन।
8ओमन अपन मन म कहिन, “हमन ओमन ला पूरा कुचर देबो!”
ओमन ओ हर एक जगह ला जला दीन, जिहां देस म परमेसर के अराधना होवत रिहिस।
9हमन ला परमेसर ले कोनो चिनहां नइं दिये जावत हे;
कोनो अगमजानी नइं बचे हें,
अऊ हमर म ले कोनो नइं जानय कि अइसने कब तक रहिही।
10हे परमेसर, कब तक बईरी ह तोर ठट्ठा करत रहिही?
का बईरी ह हमेसा तोर नांव के निन्दा करत रहिही?
11काबर तेंह अपन हांथ ला रोके रहिथस, अपन जेवनी हांथ ला?
ओला अपन कपड़ा ले बाहिर निकालके बईरीमन के नास कर दे!
12पर परमेसर ह बहुंत पहिले से मोर राजा ए;
ओह धरती ऊपर उद्धार के काम करथे।
13येह तें रहय, जऊन ह अपन सक्ति ले समुंदर ला दू भाग कर देय;
तेंह पानी म बिकराल जन्तु के मुड़ ला फोर डारय।
14येह तें रहय, जऊन ह लिबयातान ▼
▼लिबयातान समुंदर के एक बड़े जीव
के मुड़ ला कुचरकेओला जंगली पसुमन ला खाय बर देय दे।
15येह तें रहय, जऊन ह सोता अऊ झरनामन ला खोलके पानी के धारा बहाय;
तेंह नदी म हमेसा बहत पानी ला सूखा दे।
16दिन ह तोर ए, अऊ रथिया ह घलो तोर ए;
तेंह सूरज अऊ चंदा ला स्थापित करय।
17येह तें रहय, जऊन ह धरती के जम्मो सीमना ला बांधय;
धूपकाल अऊ जड़काला ला तेंह ठहिराय।
18हे यहोवा, सुरता कर कि बईरी ह कइसे तोर ठट्ठा करे हवय,
मुरूख मनखेमन कइसे तोर नांव के निन्दा करे हवंय।
19अपन पंड़की के जिनगी ला जंगली पसुमन के हांथ म झन सऊंप दे;
दुख म पड़े तोर मनखेमन के जिनगी ला हमेसा बर झन भुला दे।
20अपन करे गय करार के लाज ला रख,
काबरकि देस के अंधियार जगहमन म बहुंत हिंसा होवत हे।
21अतियाचार सहनेवाला मनखे ला लज्जा म झन पड़न दे;
गरीब अऊ जरूरतमंद मनखेमन तोर नांव के परसंसा करंय।
22हे परमेसर, उठ अऊ अपन मामला के बचाव कर;
सुरता कर कि मुरूखमन दिन भर कइसे तोर ठट्ठा करथें।
23अपन बिरोधीमन के चिचियाई ला अनदेखा झन कर,
तोर बईरीमन के कोलाहल, जऊन ह लगातार बढ़त जावत हे।
Copyright information for
HneSCA