‏ Mark 10:17-31

धनी मनखे

(मत्ती 19:16‑30; लूका 18:18‑30)

17जब यीसू ह फेर डहार म जावत रिहिस, त एक मनखे दऊड़के आईस अऊ ओकर गोड़ खाल्हे माड़ी के भार गिरके ओकर ले पुछिस, “हे बने गुरू! सदाकाल के जिनगी पाय बर मेंह का करंव?”

18यीसू ह ओला कहिस, “तेंह मोला काबर बने कहत हवस? सिरिप परमेसर के छोंड़, अऊ कोनो बने नो हंय। 19तेंह हुकूममन ला त जानत हवस: ‘हतिया झन करव, छिनारी झन करव, चोरी झन करव, लबारी गवाही झन देवव, कोनो ला झन ठगव, अपन दाई-ददा के आदरमान करव।’

20ओ मनखे ह कहिस, “हे गुरू! ये जम्मो ला मेंह अपन लइकापन ले मानत आवत हंव।”

21ओला देखके, यीसू ला ओकर ऊपर मया आईस। यीसू ह ओला कहिस, “तोर म एक बात के कमी हवय। जा, जऊन कुछू तोर करा हवय, ओ जम्मो ला बेचके गरीबमन ला देय दे, अऊ तोला स्वरग म धन मिलही। तब आ अऊ मोर पाछू हो ले।”

22ये बचन सुनके ओ मनखे के चेहरा ह उतर गे अऊ ओह उदास होके उहां ले चल दीस, काबरकि ओकर मेर अब्बड़ संपत्ति रिहिस।

23यीसू ह चारों कोति देखके अपन चेलामन ला कहिस, “धनवान मनखे के परमेसर के राज म जवई कतेक कठिन ए।”

24चेलामन ओकर बात ला सुनके चकित हो गीन। पर यीसू ह फेर कहिस, “हे लइकामन हो! परमेसर के राज म जवई कतेक कठिन ए। 25परमेसर के राज म धनवान मनखे के जाय के बनिस्पत सूजी के छेदा म ले ऊंट के निकल जवई सरल अय।”

26चेलामन अऊ जादा चकित होके एक-दूसर ला कहिन, “त फेर कोन ह उद्धार पा सकथे?”

27यीसू ह ओमन कोति देखिस अऊ कहिस, “ये बात ह मनखे के दुवारा संभव नो हय, पर परमेसर के दुवारा जम्मो बात ह संभव अय।”

28पतरस ह ओला कहिस, “देख, हमन तो जम्मो कुछू ला छोंड़के तोर पाछू हो ले हवन।”

29यीसू ह कहिस, “मेंह तुमन ला सच कहत हंव कि जऊन कोनो, मोर अऊ सुघर संदेस बर अपन घर या भाई या बहिनी या दाई या ददा या लइकामन या खेत-खार ला छोंड़ दे हवय, 30ओह ये समय म ये चीजमन ला सौ गुना पाही: घर, भाई, बहिनी, दाई, लइका अऊ खेत-खार—अऊ संग म सतावा अऊ अवइया जुग म ओला सदाकाल के जिनगी मिलही। 31पर कतको झन जऊन मन अभी आघू म हवंय, ओमन आखिरी म हो जाहीं अऊ जऊन मन आखिरी म हवंय, ओमन आघू हो जाहीं।”

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